लाॅकडाउन मे खोना नहीं है, खोजना है खुद को।
आज कोरोना वायरस जैसी महामारी से बचने के लिए लाॅकडाउन को ही एक प्रभावी कदम माना जा रहा है। बच्चों से लेकर बूढ़े तक हर व्यक्ति पर लाॅकडाउन का प्रभाव देखा जा सकता है। ऐसे में ज्यादातर लोग ऐसे हैं जो लाॅकडाउन को काफी नकारात्मक तरीके से देख रहे हैं। ऐसा नहीं है लाॅकडाउन होना एक अच्छी बात है, पर हमें यह समझना होगा की लॉकडाउन हमारी इच्छा नहीं बल्कि हमारी जरूरत है। इसी के कारण हम इस महामारी का सामना कर सकते हैं।
मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो लाॅकडाउन का व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
पर यदि व्यक्ति चाहे तो अपनी समझदारी से लॉकडाउन को एक समस्या ना बनाकर, एक अवसर बना सकता है।
मेरा इस लेख को लिखने का उद्देश्य लोगों के अंदर उसी ऊर्जा का संचार करना है, जिसके द्वारा वे इसे अवसर के रूप में देखें।
ऐसी स्थिति में जब आप घर पर होते हैं तो आपके पास करने के लिए बहुत ज्यादा काम नहीं होता, तो आप चाहे तो ऐसे कामों के बारे में चिंतन कर सकते हैं जिन्हें करने की आपके पास पूरी क्षमता है और रुचि भी है, पर पहले कभी आपको उन्हें समय देने का अवसर नहीं मिला। हम सब के अंदर कोई ना कोई गुण या क्षमता निहित होती है, बहुत बार ऐसा होता है हमें समय ना मिलने के कारण वह क्षमता हमारे अंदर ही रहती है। उदाहरण के लिए किसी मे गाना गाने की क्षमता हो सकती है, तो किसी में यूट्यूबर बनने की, कोई ब्लॉगर बन सकता है, कोई कविता लिख सकता है, कोई डांस कर सकता है, तो कोई पेंटिंग कर सकता है, कोई कुकिंग कर सकता है और ना जाने कितने तरह के शौंक होते हैं, जो लोग इन दिनों में आसानी से पूरे कर सकते हैं।
यदि आप कुछ करना ही ना चाहे, तो बात अलग है वरना किसी व्यक्ति का कोई शौंक ना हो या उसने कभी कोई कार्य करने की ना सोची हो या उसमें कोई गुण ना हो, ऐसा तो नहीं हो सकता।
तो बस अब आप शांत वातावरण में थोड़ी देर बैठिए और सोचिए कि कौन सा ऐसा काम है, जो आप हमेशा करना चाहते थे, पर समय ना मिलने के कारण आपने नहीं किया और आज आपके पास मौका है कि उस काम को कर लीजिए। तो लाॅकडाउन मैं खोए नहीं, बल्कि खोजिए अपनी प्रतिभा, हो सकता है ऐसे में आपकी सृजनात्मकता नवीन संभावनाओं को जन्म दे।
- नेहा गुप्ता
(व्यक्तिगत विचार)
(व्यक्तिगत विचार)